धर्मशास्त्र का इतिहास भाग -2 -डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे / Dharma Shastra ka Itihas Part -2 - Dr. Pandurang Vaman Kane

 धर्मशास्त्र का इतिहास भाग -2 -डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे / Dharma Shastra ka Itihas Part -2 - Dr. Pandurang Vaman Kane


वैदिक संस्कृति एवं संस्कृत साहित्य 
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धर्मशास्त्र का इतिहास भाग -2

पुस्तक का नाम - धर्मशास्त्र का इतिहास, धर्म शास्त्र का इतिहास/ Dharmashastra ka Itihas,Dharma Shastra ka Itihas
लेखक - डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे
विषय - धर्मशास्त्र, इतिहास
भाग - 2

धर्मशास्त्र का इतिहास भाग-2
(प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय धर्म तथा लोक-विधियाँ)

पुस्तक के बारे - 

' धर्म ' शब्द संस्कृत भाषा का ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग बड़े ही व्यापक अर्थों में होता आया है । धर्म वस्तुतः उन गुणों का जीवन्त समवाय है जिनके आधार पर वस्तु ' धृत ' है अर्थात् टिकी है तथा जो वस्तु द्वारा ' धारण ' किये जाते हैं अर्थात् जो वस्तु के स्वाभाविक मूल गुण हैं । इस प्रकार धर्म ही पहचान भी है और अस्तित्व भी है ।

                 धर्म का सम्बन्ध उन क्रिया संस्कारों से है जिनसे मनुष्य अनुशासित होता है । प्राचीन काल में धर्म सम्बन्धी धारणा बड़ी व्यापक थी और मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन को स्पर्श करती थी । वास्तव में धर्म किसी सम्प्रदाय या मत का द्योतक नहीं है प्रत्युत यह जीवन का एक ढंग या आचरण संहिता है जो समाज के किसी अंग एवं व्यक्ति के रूप में मनुष्य के कर्मों एवं कृत्यों को व्यवस्थित करता है , उसमें क्रमशः विकास करता हुआ उसे मानवीय अस्तित्व के लक्ष्य तक पहुँचने के योग्य बनाता है ।

                   हिन्दू धर्म उपासना की पद्धति मात्र नहीं है , वह एक समग्र जीवन दर्शन एवं व्यवहार प्रक्रिया है । उसमें सकारात्मक स्वीकृतियों के साथ निषेधात्मक पक्षों के उन्नयन की गम्भीर दृष्टि और उस पर आधारित समय - समय पर विकसित होते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों के विधान हैं , जिन्हें ' शास्त्र ' कहा जाता है । 

                इन शास्त्रों के ज्ञान को सहज करने के लिए डॉ . पाण्डुरङ्ग वामन काणे ने ' धर्मशास्त्र का इतिहास ' नामक बृहद् ग्रन्थ का प्रणयन किया है ।
(तृतीय भाग के प्रकाशकीय पृष्ठ से उद्धृत)

प्रस्तुत भाग 2 आप निम्नलिखित विषयों के बारे में पढ़ सकते हैं - 
 
राजयधर्म - राज्य के सात अंग, राजा के कर्तव्य और उत्तरदायित्व, मन्त्रीगण, राष्ट्र,दुर्ग (किला या राजधानी),कोष,बल(सेना),सुहृद् या मित्र,

व्यवहार न्याय पद्धति - व्यवहार का अर्थ,न्यायालयों के प्रकार,भुक्ति, साक्षीगण,दिव्य,सिद्धि,सीमा विवाद,वाक्पारुष्य- दण्ड पारुष्य,स्तेय,स्त्री संग्रहण,सम्पत्ति विभाजन,स्त्री धन,

सदाचार - परम्पराएँ, आधुनिक परम्परागत व्यवहार,आधुनिक भारतीय व्यवहारशास्त्र में आधार,


इसके अन्य पृष्ठ - 


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