धर्मशास्त्र का इतिहास भाग -4 -डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे / Dharma Shastra ka Itihas Part -4 - Dr. Pandurang Vaman Kane
वैदिक संस्कृति एवं संस्कृत साहित्य
Vedic Sanskriti Evam Sanskrit Sahitya
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धर्मशास्त्र का इतिहास भाग -4 |
पुस्तक का नाम - धर्मशास्त्र का इतिहास, धर्म शास्त्र का इतिहास/ Dharmashastra ka Itihas,Dharma Shastra ka Itihas
लेखक - डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे
विषय - धर्मशास्त्र
भाग - 4
धर्मशास्त्र का इतिहास भाग-4
(व्रत,उत्सव, काल,पंचांग,शांति,पुराण - अनुशीलन आदि)
पुस्तक के बारे -
' धर्म ' शब्द संस्कृत भाषा का ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग बड़े ही व्यापक अर्थों में होता आया है । धर्म वस्तुतः उन गुणों का जीवन्त समवाय है जिनके आधार पर वस्तु ' धृत ' है अर्थात् टिकी है तथा जो वस्तु द्वारा ' धारण ' किये जाते हैं अर्थात् जो वस्तु के स्वाभाविक मूल गुण हैं । इस प्रकार धर्म ही पहचान भी है और अस्तित्व भी है ।
धर्म का सम्बन्ध उन क्रिया संस्कारों से है जिनसे मनुष्य अनुशासित होता है । प्राचीन काल में धर्म सम्बन्धी धारणा बड़ी व्यापक थी और मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन को स्पर्श करती थी । वास्तव में धर्म किसी सम्प्रदाय या मत का द्योतक नहीं है प्रत्युत यह जीवन का एक ढंग या आचरण संहिता है जो समाज के किसी अंग एवं व्यक्ति के रूप में मनुष्य के कर्मों एवं कृत्यों को व्यवस्थित करता है , उसमें क्रमशः विकास करता हुआ उसे मानवीय अस्तित्व के लक्ष्य तक पहुँचने के योग्य बनाता है ।
हिन्दू धर्म उपासना की पद्धति मात्र नहीं है , वह एक समग्र जीवन दर्शन एवं व्यवहार प्रक्रिया है । उसमें सकारात्मक स्वीकृतियों के साथ निषेधात्मक पक्षों के उन्नयन की गम्भीर दृष्टि और उस पर आधारित समय - समय पर विकसित होते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों के विधान हैं , जिन्हें ' शास्त्र ' कहा जाता है ।
लोकप्रिय और सारगर्भित ग्रंथ धर्मशास्त्र का इतिहास के इस चतुर्थ भाग में विशेष रूप से व्रत , उत्सव , काल , पंचांग , पुराण , अनुशीलन आदि विषयों को सम्मिलित किया गया है । इनसे सम्बन्धित 25 अध्यायों में परम्परा में इनके समूचे विकासक्रम को संजोया गया है । इसे शब्दाकार देते हुए विद्वान लेखक ने इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि एक स्थान पर विषय - विशेष से सम्बन्धित समस्त जानकारी क्रमवार उपलब्ध हो और सुधी पाठक समग्रता में सम्बन्धित क्षेत्र का अवगाहन कर सकें । • पुस्तक में टिप्पणियों के साथ जानकारी के स्रोत पर भी प्रकाश डाला गया है , जिससे सम्पूर्ण प्रस्तुति अत्यन्त आधि कारिक रूप में सामने आयी है । भारतीय वांग्मय की इस अनमोल धरोहर के चौथे खंड का पंचम संस्करण हिन्दी समिति प्रभाग की प्रकाशन योजना के अन्तर्गत प्रकाशित करते हुए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान अत्यन्त गौरवान्वित है । आशा है , जिस तरह से चार दशक के दौरान छात्र , मनीषी और विद्वान इस ज्ञान - समुद्र में अवगाहन करते रहे हैं और भारतीय संस्कृति की महानताओं से परिचित होते रहे हैं , भविष्य में भी यह क्रम निरंतर बनाये रखेंगे ।
इन शास्त्रों के ज्ञान को सहज करने के लिए डॉ . पाण्डुरङ्ग वामन काणे ने ' धर्मशास्त्र का इतिहास ' नामक बृहद् ग्रन्थ का प्रणयन किया है ।
(तृतीय भाग के प्रकाशकीय पृष्ठ से उद्धृत)
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