मनुस्मृति - सभी विद्वानों की व्याख्या / Manusmriti - All type Translation

            

महर्षि मनु द्वारा रचित मनुस्मृति की सभी विद्वानों द्वारा व्याख्यायित 

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लेखक - डॉ. सुरेन्द्र कुमार 
आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट 
आजकल हवा में एक शब्द उछाल दिया गया है - 'मनुवाद' , किन्तु इसका अर्थ नहीं बताया गया है। इसका प्रयोग भी उतना अस्पष्ट और लचीला है, जितना राजनीतिक शब्दों का। मनुस्मृति के निष्कर्ष के अनुसार मनुवाद का सही अर्थ है - 'गुण-कर्म-योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों के महत्त्व पर आधारित विचारधारा ', और तब, 'अगुण-अकर्म-अयोग्यता के अश्रेष्ठ मूल्यों पर आधारित विचारधारा ' को कहा जायेगा - 'गैर मनुवाद' ।
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मनुस्मृति 
मेधातिथिभाष्यसमलङ्कृता प्रथमादिषष्ठाध्यायपर्यन्ता 

"श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रन्तु वै स्मृतिः "

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।।

अर्थात् - धैर्य रखना, क्षमा करना, मन का नियन्त्रण, चोरी न करना, शुद्धता रखना, अपने इन्द्रियों पर संयम रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य का पालन और क्रोध न करना - ये धर्म के दश लक्षण बताए गए हैं। जिन्हें आप इस पृष्ठ पर दिये गये ग्रन्थों में पढ़ सकते हैं।

             
     
कुल्लूकभट्टविरचित
मन्वर्थमुक्तावली संस्कृत टीका एवं हिन्दीभाषानुवाद 
व्याख्याकार - डॉ. राकेश शास्त्री 

- प्राणियों के उत्पन्न होने के प्रकार -

येषां तु यादृशं कर्म भूतानामिह कीर्तितम् ।
तत्तथा वोऽभिधास्यामि क्रमयोगं च जन्मनि ।।
                  मनुस्मृति प्रथम अध्याय, श्लोक ४२
इस संसार में जिन प्राणियों का जिस प्रकार कार्य कहा गया है, उसको तथा उनके जन्म आदि के क्रमयोग को (मैं अब) उसी प्रकार आप सबसे कहूंगा।
पशवश्च मृगाश्चैव व्यालाश्चोभयतोदतः ।
रक्षांसि च पिशाचाश्च मनुष्याश्च जरायुजाः ।।
              मनुस्मृति प्रथम अध्याय, श्लोक ४३
दोनों ओर दांतों से युक्त, पशु, मृग तथा व्याल,राक्षस, पिशाच एवं मनुष्य ये सभी शरीर से उत्पन्न होने वाले (अतः जरायुज)  प्राणी हैं।
अण्डजाः पक्षिणः सर्पा नक्रा मत्स्याश्च कच्छपाः ।
यानि चैवं प्रकाराणि स्थलजान्यौदकानि च ।।
                       मनुस्मृति प्रथम अध्याय, श्लोक ४४
पक्षी, सर्प, मगर, मछली तथा कछुए एवं इसी प्रकार के जो पृथ्वी पर विचरण करने वाले जीव 'अण्डज' हैं।
स्वेदजं दंशमशकं यूकामक्षिकमत्कुणम् ।
ऊष्मणश्चोपजायन्ते यच्चान्यत्किंचिदीदृशम् ।।
                     मनुस्मृति प्रथम अध्याय, श्लोक ४५
(इसके अतिरिक्त) डाॅंस, मच्छर, जूॅं, मक्खी, खटमल तथा अन्य जो भी इसी प्रकार के जीव गर्मी से उत्पन्न होते हैं, (वे सब) स्वेदज हैं।
उद्भिज्जाः स्थावराः सर्वे बीजकाण्डप्ररोहिणः ।
ओषध्यः फलपाकान्ता बहुपुष्पफलोपगाः ।।
               मनुस्मृति प्रथम अध्याय, श्लोक ४६
बीज तथा डाल (कलम) से उत्पन्न होने वाले, सभी वृक्ष आदि स्थावर प्राणी उद्भिज्ज हैं । फल के पकने पर नष्ट होने वाले, अत्यंत पुष्प एवं फलों से संपन्न स्थावर प्राणी औषधि (कहलाते हैं)।
अपुष्पाः फलवन्तो ये ते वनस्पतयः स्मृताः ।
पुष्पिणः फलिनश्चैव वृक्षास्तूभयतः स्मृताः ।।
              मनुस्मृति प्रथम अध्याय, श्लोक ४७
जो बिना पुष्पों के ही फल युक्त होते हैं, वे वनस्पतियां कही गई हैं तथा पुष्प एवं फल दोनों से युक्त वृक्ष कहलाते हैं।
गुच्छगुल्मं तु विविधं तथैव तृणजातयः ।
बीजकाण्डरुहाण्येव प्रताना वल्ल्य एव च ।।
              मनुस्मृति प्रथम अध्याय, श्लोक ४८
अनेक प्रकार के गुल्म, गुच्छ, तृण जातियां लताएं तथा वल्लरियां भी 
 उसी प्रकार बीज तथा शाखाओं से उत्पन्न होने वाली हैं।




मनुस्मृति: - द्वितीयो भागः 
कुल्लूकभट्टविरचित
मन्वर्थमुक्तावली संस्कृत टीका एवं हिन्दीभाषानुवाद 
व्याख्याकार - डॉ. राकेश शास्त्री 

                

विशुद्ध मनुस्मृतिः
व्याख्याकार - डॉ. सुरेन्द्र कुमार 
आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट 


                 

राजर्षि मनु और उनकी मनुस्मृति 
लेखक - डॉ. सुरेन्द्र कुमार 


            
         
विशुद्ध मनुस्मृतिः
व्याख्याकार - डॉ. सुरेन्द्र कुमार 
आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट 

 

मनुस्मृति 
टीकाकार - श्री गणेशदत्त पाठक 


                
अष्टादश मनुस्मृति 
व्याख्याकार - पं. सुन्दरलालजी त्रिपाठी 

    

मनुस्मृति 
व्याख्याकार -  पं. रामेश्वर भट्ट 


मनुस्मृति भाग - २
अध्याय - ७ - १२
'मेधातिथि' भाष्य, सविमर्श 'मणिप्रभा' हिन्दीटीकासहिता
व्याख्याकार - पं. हरगोविन्द शास्त्री 

- शिल्पी आदि से कार्य करवाना - 

कारुकान्‌ शिल्पिनश्चैव शूद्रांश्चात्मोपजीविनः ।
 एकैकं कारयेत्कर्म मासि मासि महीपतिः ।।
                  मनुस्मृति अध्याय - ७, श्लोक - १३८

अर्थ :- 
कारीगर, बढ़ई, लोहार आदि, बोझ आदि ढोनेवाले (मजदूर आदि) से राजा प्रति महीने में एक दिन काम करवावे (इनसे दूसरा कोई कर न लेवें।









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