संस्कृत साहित्य परिचय / Sanskrit Sahitya Parichay

संस्कृत साहित्य परिचय / Sanskrit Sahitya Parichay


वैदिक संस्कृति एवं संस्कृत साहित्य 
Vedic Sanskriti Evam Sanskrit Sahitya


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              ऋग्वेद संसार का प्राचीनतम ग्रन्थ है, यह बात पूरी दुनिया मानती है, परन्तु हमारी सनातन परंपरा के अनुसार चारों ही वेद मानव सृष्टि के प्रारम्भ से ही हैं, जिन्हें परमात्मा ने चार ऋषियों के अन्तःकरण में दिया था। वे चारों वेद हैं- 

वेद

2. यजुर्वेद - वायु ऋषि
3. सामवेद - आदित्य ऋषि
4. अथर्ववेद - अङ्गिरा ऋषि

 वेद तथा वेद को समझने के लिए बाद में ऋषियों द्वारा जो ग्रन्थ रचे गए उन सभी को वैदिक संहिता के अन्तर्गत माने जाते हैं। इस प्रकार वैदिक संहिता को चार भागों में बांटा गया है - 

1. संहिता 2. ब्राह्मण 3. आरण्यक और  4. उपनिषद्

इनमें से संहिता में वे चारों मूल वेद आते हैं -
(ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) 
जो किसी ऋषि अथवा मनुष्य द्वारा नहीं रचे गए हैं अपितु परमात्मा-कृत हैं, अतः इन्हें अपौरुषेय कहा जाता है। 
कालान्तर में इन चारों वेदों की संहिता भी अनेक शाखाओं में विभक्त हो गई हैं। प्रत्येक वेद की अलग -अलग शाखाएँ हैं। इनके नाम निम्नलिखित हैं - 

1. संहिता

ऋग्वेद की शाखाएँ - 

1. शाकल  2. बाष्कल  3. आश्वलायन  
4. शांखायन  5. माण्डूकायन

यजुर्वेद की शाखाएँ - 

1. माध्यन्दिन  2. काण्व  3. कठ 
4. कपिष्ठल  5. तैत्तिरीय  6. मैत्रायणी

सामवेद की शाखाएँ - 

1. कौथुमीय  2. राणायनीय  3. जैमिनीय

अथर्ववेद की शाखाएँ - 

1. पिप्पलाद  2. शौनक  3. मौदमहाभाष्य  4. स्तौद
5. जाजल  6. जलद  7. ब्रह्मवेद  8. चारणवैद्य  9. देवदर्श

अन्य तीन = ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् - इनको प्रत्येक वेद के आधार पर ऋषियों द्वारा रचे गए हैं। जैसे - ऋग्वेद का ब्राह्मण, ऋग्वेद का आरण्यक और ऋग्वेद का उपनिषद् आदि। इनके नाम निम्नलिखित हैं - 

2. ब्राह्मण

1.ऋग्वेद  -             ऐतरेय, कौषीतकि (शांखायन)
2.शुक्ल यजुर्वेद -     शतपथ ब्राह्मण
कृष्ण यजुर्वेद -        तैत्तिरीय ब्राह्मण
3.सामवेद -            ताण्ड्य(पंचविंश), षड्विधान,आर्षेय                                           देवताध्याय, उपनिषद्, (मन्त्र                                                     ब्राह्मण),संहितोपनिषद् वंश ब्राह्मण
4.अथर्ववेद -           गोपथ ब्राह्मण

3.आरण्यक

1.ऋग्वेद -.              ऐतरेय, शांखायन (कौषीतकि)
2.शुक्ल यजुर्वेद -      बृहदारण्यक
कृष्ण यजुर्वेद -.         तैत्तिरीय
3.सामवेद -.             कोई आरण्यक प्राप्त नहीं
4.अथर्ववेद -             कोई आरण्यक प्राप्त नहीं

उपनिषद्

1.ऋग्वेद -.              ऐतरेय, शांखायन (कौषीतकि)
2.शुक्ल यजुर्वेद -      ईशोपनिषद्, बृहदारण्यकोपनिषद्
कृष्ण यजुर्वेद -         तैत्तिरीय, कठ, श्वेताश्वतर, मैत्रायणी,. महानारायण
3.सामवेद -              छान्दोग्य, केनोपनिषद्
4.अथर्ववेद -             प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य

उपरोक्त उपनिषदें चारों वेदों के आधार पर हैं, परन्तु इनमें से कुछ ही उपनिषदें वर्तमान में उपलब्ध होते हैं, वे निम्नलिखित हैं - 

1.ईश,               2.केन,          3.कठ

उपवेद - Upved

3. गान्धर्ववेद
4. अर्थवेद - कौटिल्य अर्थशास्त्र

वेदाङ्ग - Vedang

1. शिक्षा,       2. कल्प, 
3. व्याकरण,  4. निरुक्त, 
5. छन्द,         6. ज्योतिष
उपरोक्त छः वेदाङ्गों में प्रत्येक में अनेक ग्रन्थ रचे गए हैं, वे निम्नलिखित हैं - 

1. शिक्षा ग्रन्थ -

1.पाणिनीय शिक्षा          2.याज्ञवल्क्य शिक्षा 
3. वशिष्ठी शिक्षा            4. व्यास शिक्षा 
5. व्याली शिक्षा             6. वाशिष्ठ शिक्षा 
7. वर्णरत्न प्रदीपिका       8. स्वरव्यंजन शिक्षा 
9. शैशिरीय शिक्षा           10. पारि शिक्षा 
11. स्वरभक्तिलक्षणपरिशिष्ट शिक्षा 12. पदचन्द्रिका 
13. पाराशरी शिक्षा         14. सिद्धान्त शिक्षा 
15. सर्वसम्मत शिक्षा        16. षोडश्श्लोकी शिक्षा 
17. शमान शिक्षा             18. शम्भु शिक्षा 
19. केशवी पद्यात्मिका शिक्षा 20. अथर्ववेदीया माण्डूकी शिक्षा

2. कल्प साहित्य - इसके अन्तर्गत अनेक विभाग हैं और उनके ग्रन्थ हैं ।

1.स्मृतिसूत्र,     2. श्रौतसूत्र, 
3.धर्मसूत्र,         4.गृह्यसूत्र, 
5.शुल्बसूत्र
1.स्मृति सूत्र - 
1. मनुस्मृति             2. याज्ञवल्क्य स्मृति 
3. पाराशर स्मृति       4. अत्रि स्मृति 
5. विष्णु स्मृति          6. हारीत स्मृति 
7. औशनसीस्मृति      8. आंगिरस स्मृति 
9. यम स्मृति            10. आपस्तम्ब स्मृति 
11. संवर्त स्मृति        12. कात्यायन स्मृति 
13. बृहस्पति स्मृति    14. व्यास स्मृति 
15. शंख स्मृति          16. लिखित स्मृति 
17. दक्ष स्मृति           18. गौतम स्मृति 
19. शातातप स्मृति     20. वसिष्ठ स्मृति 
21. नारद स्मृति          22. देवल स्मृति
2. श्रौतसूत्र 
1. वराह        2. वैखानस       3. मानव 
4. भारद्वाज   5. बौधायन        6. आश्वलायन 
7. आपस्तम्ब  8. द्राह्यायण      9. निदान 
10. वैतान     11. लाट्यायण   12. शांखायन 
13. जैमिनीय
3. धर्मसूत्र
1. हिरण्यकेशि 2. बौधायन 3. विष्णु 
4. आपस्तम्ब 5. वैखानस 6. वाशिष्ठ 
7. गौतम
4. गृह्यसूत्र
1. आश्वलायन      2. वाराह         3. वैखानस  
4. शांखायन         5. पारस्कर      6. बोधायन  
7. मानव             8. हिरण्यकेशि   9. कौशिक  
10. जैमिनीय      11. कौथुमीय    12. खादिर-द्राह्यायण
13. गोभिलीय     14. काठक       15. कौषीतक  
16. भारद्वाज।     17. आपस्तम्ब   18. आग्निवेश्य 
5. शुल्बसूत्र
 1. मानव 2. हिरण्यकेशि 3. मैत्रायणीय 
4. कात्यायन 5. बौधायन 6. आपस्तम्ब

3. व्याकरण

पाणिनि कृत
3. गणपाठ
उपरोक्त पाणिनि मुनि द्वारा रचित व्याकरण के 5 ग्रन्थों को समझने हेतु अनेक ऋषियों और विद्वानों ने इनके भाष्य ग्रन्थ लिखे, जिन्हें 'वृत्ति' कहा जाता है।

सर्वप्रथम कात्यायन मुनि ने अष्टाध्यायी पर वार्तिक सूत्रों की रचना की। इसके बाद ऋषि पतञ्जलि ने अष्टाध्यायी पर महाभाष्य ग्रन्थ की रचना की।
इतिहास में व्याकरण के तीन ऋषि माने जाते हैं - 
1. पाणिनि 2. कात्यायन और 3. पतञ्जलि

जब तक इन तीन ऋषियों द्वारा रचित ग्रन्थों को न पढ़ा जाये तब तक व्याकरण को पूर्ण रूप से नहीं समझा जा सकता है। अब आगे अन्य सभी व्याकरण के ग्रन्थों को दिए जा रहे हैं जो अष्टाध्यायी को अथवा व्याकरण को समझने के लिए लिखे गए। व्याकरण में दो सम्प्रदाय चल पड़े हैं - 1. प्राचीन व्याकरण और 2. नव्य व्याकरण।
दोनों सम्प्रदायों के साहित्य - 
  1. काशिका - वामन, जयादित्य
  2. वाक्यपदीयम् - राजा भर्तृहरि
  3. माधवीया धातुवृत्ति - आचार्य सायण
  4. न्यास-पदमंजरी - जिनेन्द्र बुद्धि, हरदत्त मिश्र
  5. अष्टाध्यायी भाष्य प्रथमावृत्ति - पं. ब्रह्मदत्त जिज्ञासु
  6. लघुसिद्धान्त कौमुदी
  7. मध्यसिद्धान्त कौमुदी
  8. वैयाकरण सिद्धान्त कौमुदी
  9. वैयाकरणभूषणसारः
  10. परमलघुमंजूषा
  11. पारिभाषिक:
  12. परिभाषेन्दुशेखरः
  13. लघुशब्देन्दुशेखरः

उपाङ्ग/दर्शन/शास्त्र- Darshan

आस्तिक दर्शन

1. न्याय - गौतम ऋषि   2.  वैशेषिक - कणाद ऋषि
3. सांख्य - कपिल ऋषि   4. योग - पतंजलि ऋषि
5. मीमांसा - जैमिनी ऋषि, 6.  वेदान्त - व्यास ऋषि

नास्तिक दर्शन - 

1. चार्वाक दर्शन, 2. जैन दर्शन, 3. बौद्ध दर्शन

भारतवर्ष के दो बड़े ऐतिहासिक ग्रन्थ -


पुराणानि - Puran

3.कालिकापुराणम्
5.देवीभागवतपुराणम्
7.पद्मपुराणम्
10.ब्रह्माण्डपुराणम्
13.मारकण्डेयपुराणम्
14.लिङ्गपुराणम्
17.शिवपुराणम्
19.श्रीमद्भागवतपुराणम् 


काव्यशास्त्र / Kavya Shastra

अलंकारमणिहारः    चमत्कारचन्द्रिका
उज्ज्वलनीलमणिः   दशरूपकम्   
काव्यमीमांसा         ध्वनितत्वसमीक्षा
काव्यालंकारः         नाटकचन्द्रिका
काव्यादर्शः            नाट्यशास्त्र व्याख्या अभिनवभारती
काव्यालंकारसारसंग्रहः  प्रतापरूद्रीयम्
काव्यालंकारसूत्रम्         रसगंगाधरः
काव्यालंकारसूत्रवृत्तिः।   रसार्णवसुधाकरः
कुवलयानन्दः                वक्रोक्तिजीवितम्
व्यक्तिविवेकः                श्रृंगारप्रकाशः
श्रृंगारतिलकः               साहित्यदर्पणम्

नाट्यशास्त्र / Natya Shastra

अभिज्ञानशाकुन्तलम्     पञ्चरात्रम्
अभिषेकनाटकम्          पद्मिनीपरिणयः
अविमारकम्               पादताडितकम्
उत्तररामचरितम्           प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्
उरुभङ्गम्                   प्रतिमानाटकम्
कर्णभारम्                  बालचरितम्
चारुदत्तम्                   मत्तविलासप्रहासनम्
दूतघटोत्कचम्             मध्यमव्यायोगः
दूतवाक्यम्                 विक्रमोर्वशीयम्
धूर्तसमागमः               स्वप्नवासवदत्तम्
नाट्यशास्त्रम्              मृच्छकटिकम्
स्वप्नवासवदत्ता           वेणीसंहारः
कुन्दमाला                 रत्नावली

गद्य साहित्य / Gadya Sahitya

कथाकुसुमम्
कपीनामुपवासः
दशकुमारचरितम्
द्वात्रिंशत्पुत्तलिकासिंहासनम्
पञ्चतन्त्रम्
वासवदत्ता
वेतालपञ्चविंशतिः
शिवराजविजयः
संस्कृतवाग्व्यवहारसाहस्री
हर्षचरितम्
हितोपदेशः

पद्य साहित्य / Padya Sahitya

गीता
गीतिकाव्य - गीतगोविन्दम्
ज्ञानेश्वरस्य अभङ्गपद्यानि
नीतिग्रन्थाः
असाधारणव्यवहारमातृकाप्रकरणम्
चाणक्यनीतिः/चाणक्यनीतिदर्पणम्
दर्पदलनम्
नीतिप्रकाशिका
विदुरनीतिः
सारसमुच्चयः
महाकाव्यम्- 
कुमारसम्भवम्
नैषधीयचरितम्
श्रीकृष्णविलासम्
लघुपद्यानि - 
उदार जगदाधार
तां विद्यामिह लभेमहि
शतककाव्यानि - 
अमरुकशतकम्
गाहासत्तसई
सन्देशकाव्यानि-
मेघदूतम्
मेघसन्देशः - दक्षिणावर्तनाथः १९१९
अनुगीता
ऋतुसंहारम्
कथासरित्सागरः
दण्डान्वयः
दासबोधः
प्राणाभरणम्
बृहत्कथा श्लोकसंग्रहः
रसमञ्जरी
राजेन्द्रकर्णपूरः
शान्तविलासः
हम्मीरमहाकाव्यम्
चम्पू साहित्यम्
चम्पूरामायणम्
चम्पूभारतम्
नलचम्पू
विश्वगुणादर्शचम्पू
नीलकण्ठविजयचम्पू


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वैदिक संस्कृति एवं संस्कृत साहित्य 
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2 टिप्पणियाँ

  1. संस्कृत साहित्य में पूर्ण ज्ञान का घट भरा हुआ है।

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    1. जी,
      हमारी वेबसाइट में आपका स्वागत है। यहां आने के लिए आपका धन्यवाद।

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