भारतीय दर्शन / Bharatiya Darshan
भारतीय दर्शन / Bharatiya Darshan
संसार एक अबूझ पहेली है जिसे सुलझाने के लिए अनेक सभ्य और शिक्षित देशों के चिन्तनशील मनीषियों ने प्रशस्त प्रयास किया है । भारतवर्ष के तत्त्वदर्शी विद्वानों ने अपने प्रातिभ चक्षु से जिन सूक्ष्म तत्त्वों का साक्षात्कार किया है और अपनी पैनी बुद्धि के द्वारा जिन सिद्धान्तों का विश्लेषण किया है , वे दर्शन के इतिहास में नितान्त महनीय है ।
तत्त्वज्ञान तो भारतीय संस्कृति और धर्म की मूल प्रतिष्ठा है जिसके अभ्युदय से परिचित होना प्रत्येक सुशिक्षित भारतीय का पावन कर्तव्य है । भारतीय तत्त्वज्ञान का मार्मिक विश्लेषण और गम्भीर अध्ययन दर्शनशास्त्र का मूल उद्देश्य हैं ।
'दर्शन' शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- 'दृश्यते तत्त्वम् अनेन इति दर्शनम्'- जिसके द्वारा वस्तु के सत्यभूत तात्त्विक स्वरूप को देखा जाय वह दर्शन है । हम कौन हैं ? कहाँ से आये हैं ? इस सर्वतो दृश्यमान जगत् का सत्य स्वरूप क्या है ? इसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई ? इस सृष्टि का कौन कारण है ? यह चेतन है या अचेतन ? इस विषय में हमारा क्या कर्तव्य है ? जीवन को सुचारू रूप से जीने के लिए कौन सा उपयुक्त साधनमार्ग है , जीवन का चरम लक्ष्य क्या हैं ? आदि जिज्ञासाओं का समुचित समाधान देना ' दर्शन ' का प्रमुख ध्येय हैं ।
दर्शन को ' शास्त्र ' शब्द से अभिहित किया है । शास्त्र शब्द शास् और शंस् इन दो धातुओं से निष्पन्न होता है , जिसका क्रमशः शासन और शंसन अर्थ होता है । शासन अर्थ में शास्त्र का अर्थ धर्मशास्त्र है और शंसन अर्थ में शास्त्र का अर्थ वस्तु के सच्चे स्वरूप का वर्णन है । शासनशास्त्र क्रियापरक और शंसनशास्त्र ज्ञानपरक होता है । शंसनशास्त्र के अर्थ में ही ' शास्त्र ' का प्रयोग दर्शन शब्द के साथ होता है । धर्मशास्त्र विधिनिषेध का प्रधानतया विधान करने में 'पुरुष परतंत्र है' , किन्तु दर्शनशास्त्र वस्तुस्वरूप का प्रतिपादक होने से 'वस्तुतन्त्र' है ।
पाश्चात्त्य विचारशास्त्र ( दर्शन ) का सामान्य नाम 'फिलासफी' है । यह शब्द दो ग्रीक शब्दों के मिश्रण से बना हुआ है - फिलास - प्रेम या अनुराग तथा 'सोफिया' - विद्या । अतः इस शब्द का अर्थ है विद्या का अनुराग । जो जिज्ञासु विद्वान् जीव , जगत , ईश्वर , धार्मिक और सामाजिक तत्त्वों के अन्वेषण में प्रयत्नशील होते थे वे 'फिलासफर' ( विद्यानुरागी ) कहलाते थे ।
विभिन्न विज्ञानों के द्वारा उद्भावित सत्यों का एकीकरण फिलासफी का विषय है । अतः सामान्य रूप से दर्शन के लिए फिलासफी का प्रयोग किया जा सकता है , परन्तु दोनों के ध्येय में पार्थक्य है । दोनों शब्दों के शाब्दिक अर्थों से दोनों के उद्देश्य की भिन्नता की सूचना मिलती है । फिलासफी कल्पनाकुशल कोविदों के मनोविनोद का साधनमात्र है , किन्तु भारतीय दर्शन दुःखत्रय- आधिभौतिक , आधिदैविक , आध्यात्मिक दुःख के अहर्निशविघात से उद्विग्न जीव को मोक्ष के निए साधन का मार्ग प्रशस्त करता है । अतः भारतीय दर्शन की दृष्टि पाश्चात्त्य फिलासफी की अपेक्षा कहीं अधिक व्यावहारिक , लोकोपकारक और सुव्यवस्थित है ।
0 टिप्पणियाँ