चार्वाक दर्शन - आचार्य आनन्द झा / Charvak Darshan - Acharya Anand Jha
वैदिक संस्कृति एवं संस्कृत साहित्य
Vedic Sanskriti Evam Sanskrit Sahitya
पुस्तक का नाम - चार्वाक दर्शन / Charvak Darshan
लेखक - आचार्य आनन्द झा
विषय - दर्शन, Philosophy
प्रकाशक - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
इस पुस्तक का नाम चार्वाक दर्शन है। इस पुस्तक के लेखक आचार्य आनन्द झा जी हैं। इस पुस्तक में ४२५(425) पृष्ठ हैं और भूमिका तथा अन्य आगे-पीछे के सब पृष्ठ मिलाकर लगभग 445 पृष्ठ हैं। इस पुस्तक का आकार 97.6 MB है।
इसका प्रकाशन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान,लखनऊ है। यहां पर आप पुस्तक को ऑनलाइन भी पढ़ सकते हैं और डाउनलोड भी कर सकते हैं। दोनो का लिंक नीचे दिया गया है।
चार्वाक दर्शन के प्रवर्तक आचार्य बृहस्पति माने जाते हैं। इन्होंने संसार में इसका खूब प्रचार किया, सामान्य जन के लिए इस दर्शन के विचार बहुत ही शीघ्र समझ में आ जाता है अतः प्रारम्भ में इसका प्रचार बहुत शीघ्रता से हुआ होगा, इसलिए इसे लोकायत दर्शन भी कहा जाता है।
इसे नास्तिक दर्शन के अन्तर्गत रखा गया है।
बाद में इस दर्शन का बहुत ही खंडन भी हुआ। इस दर्शन के अनुसार शरीर ही आत्मा है,कोई पुनर्जन्म नहीं होता है। कोई परमात्मा नहीं है। इसलिए जो शरीर मिला है इसको अच्छे से बनाओ,खूब अच्छे से खाओ, पीओ और मौज से रहो। इनका सिद्धान्त है -
यावज्जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।।
अर्थात्- जब तक जियो सुख से जियो, उधार लेकर घी पियो। इस शरीर के जलने के बाद पुनर्जन्म कहां होना।
इस प्रकार के विचार अधिकतर बुद्धिमान लोगों को पसन्द नहीं आया और इसका खण्डन प्रारम्भ हो गया।
वैसे सही से विचार किया जाये तो यह विचार गलत ही लगता है क्योंकि इसमें केवल स्वार्थ की भावना झलकती है। इसलिए बहुत से विद्वानों की दृष्टि में यह मार्ग वाममार्ग कहा जाता है और इस मार्ग पर चलने वाले लोग वाममार्गी कहलाते हैं।
इस दर्शन के बारे में अधिक रूप से जानकारी प्राप्त करने के लिए पुस्तक को पढ़िए जिसका लिंक नीचे दिया गया है।
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