धर्मशास्त्र का इतिहास भाग -5 -डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे / Dharma Shastra ka Itihas Part -5 - Dr. Pandurang Vaman Kane

 धर्मशास्त्र का इतिहास भाग -5 -डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे / Dharma Shastra ka Itihas Part -5 - Dr. Pandurang Vaman Kane


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धर्मशास्त्र का इतिहास भाग -5

पुस्तक का नाम - धर्मशास्त्र का इतिहास, धर्म शास्त्र का इतिहास/ Dharmashastra ka Itihas,Dharma Shastra ka Itihas
लेखक - डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे
विषय - धर्मशास्त्र, इतिहास
भाग - 5

धर्मशास्त्र का इतिहास भाग-भाग-5
(विभिन्न दार्शनिक सिद्धान्तों के प्रकाश में धर्मशास्त्र - रचना का विवेचन )
 
पुस्तक के बारे - 

' धर्म ' शब्द संस्कृत भाषा का ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग बड़े ही व्यापक अर्थों में होता आया है । धर्म वस्तुतः उन गुणों का जीवन्त समवाय है जिनके आधार पर वस्तु ' धृत ' है अर्थात् टिकी है तथा जो वस्तु द्वारा ' धारण ' किये जाते हैं अर्थात् जो वस्तु के स्वाभाविक मूल गुण हैं । इस प्रकार धर्म ही पहचान भी है और अस्तित्व भी है ।

                 धर्म का सम्बन्ध उन क्रिया संस्कारों से है जिनसे मनुष्य अनुशासित होता है । प्राचीन काल में धर्म सम्बन्धी धारणा बड़ी व्यापक थी और मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन को स्पर्श करती थी । वास्तव में धर्म किसी सम्प्रदाय या मत का द्योतक नहीं है प्रत्युत यह जीवन का एक ढंग या आचरण संहिता है जो समाज के किसी अंग एवं व्यक्ति के रूप में मनुष्य के कर्मों एवं कृत्यों को व्यवस्थित करता है , उसमें क्रमशः विकास करता हुआ उसे मानवीय अस्तित्व के लक्ष्य तक पहुँचने के योग्य बनाता है ।

                   हिन्दू धर्म उपासना की पद्धति मात्र नहीं है , वह एक समग्र जीवन दर्शन एवं व्यवहार प्रक्रिया है । उसमें सकारात्मक स्वीकृतियों के साथ निषेधात्मक पक्षों के उन्नयन की गम्भीर दृष्टि और उस पर आधारित समय - समय पर विकसित होते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों के विधान हैं , जिन्हें ' शास्त्र ' कहा जाता है । 

                          इसके इस पंचम खंड में एक ओर जहां तांत्रिक सिद्धांत व मीमांसा व धर्मशास्त्र आदि का उल्लेख है, वहीं सांख्य,योग, तर्क,कर्म व समूची संस्कृति की मुख्य विशेषताएं सम्मिलित हैं, इनमें से कई दर्शन जहां ईश्वरीय अस्तित्व को स्वीकारते हैं वहीं कई उसे नकारते भी हैं, भारतीय परम्परा  में तंत्र को भी अलौकिक सत्ता से साक्षात्कार का प्रमुख माध्यम  माना गया है, सो उस पर भी सारगर्भित सामग्री प्रभावित करती है ,तंत्र परंपरा कब और कैसे भारतीय दर्शन का हिस्सा बनी, इस पर इस खंड में प्रकाश डाला गया है 

धर्मशास्त्र का इतिहास ग्रंथ का यह पंचम खंड मूलतः विभिन्न दार्शनिक सिद्धान्तों  की विवेचना पर केंद्रित है और उनके सन्दर्भ   में विभिन्न धर्मशास्त्रों की विवेचना विद्वान्  लेखक ने की है 

                इन शास्त्रों के ज्ञान को सहज करने के लिए डॉ . पाण्डुरङ्ग वामन काणे ने ' धर्मशास्त्र का इतिहास ' नामक बृहद् ग्रन्थ का प्रणयन किया है ।
(तृतीय भाग के प्रकाशकीय पृष्ठ से उद्धृत)


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